Jharkhand: झारखंड से राज्यसभा सांसद सह राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखा है। इसमें बांग्लाभाषी बहुल स्थानों को चिह्नित करते हुए झारखंड के रेलवे स्टेशनों पर अविलंब जनजातीय भाषाओं के साथ-साथ बांग्ला का भी प्रयोग अनिवार्य करने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि झारखंड 1912 तक बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा रहा था। इसके बाद यह बिहार का हिस्सा बना। 1908 से ही भारतीय रेल अस्तित्व में आया। पूरे भारत में रेललाइन बिछनी शुरू हुई। सुगम परिचालन के लिए स्टेशन और हॉल्ट बनाए गए। दक्षिण बिहार का वर्तमान भूखंड झारखंड के सभी रेलवे स्टेशनों और हॉल्टों में नाम पट्टिकाओं में अंग्रेजी, हिन्दी, बांग्ला और कई विशेष स्थानों पर उड़िया शब्दों में स्थान का नाम अंकित होता था । संविधान में लोक भाषाओं की महत्ता को स्वीकार करते हुए और आठवीं अनुसूची में संथाल भाषा की मान्यता के बाद संथाली भाषा में भी नामाकरण किया जाने लगा। शिबू सोरेन ने रेल मंत्री से आग्रह किया है कि झारखंड सरकार से परामर्श कर बांग्ला भाषी बहुल स्थानों को चिह्नित कर अविलंब रेलवे स्टेशनों पर जनजातीय भाषाओं के साथ-साथ बांग्ला भाषा का भी प्रयोग अनिवार्य किया जाए।
इस दिशा में पहल के लिए सीएम हेमंत सोरेन को भी पत्र लिखा गया है। पत्र के माध्यम से कहा गया है कि झारखंड के संताल परगना, मानभूम, सिंहभूम, धालभूम और पंचपरगना क्षेत्रों में बंग्ला भाषी बहुतायत संख्या में रहते हैं। बांग्ला राज्य के एक बड़े हिस्से में बोल-चाल की एक सामान्य भाषा हैं I झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने राज्य सरकार और केंद्रीय रेलमंत्री को लिखी चिट्ठी में कहा है कि पाकुड़, बड़हवा, जामताड़ा, मिहिजाम, मधुपुर, जसीडीह, मैथन, कुमारधुबी, चिरकुंडा, कालुबथान, धनबाद, गोमो, पारसनाथ, हजारीबाग रोड, मुरी, रांची, हटिया, चाकुलिया, गालूडीह, राखा माइंस, टाटानगर, चांडिल कांड्रा, चक्रधरपुर, चाईबासा, बरकाकाना, रांची रोड जैसे कई पुराने रेलवे स्टेशनों का नाम पहले बांग्ला भाषा में लिखा होता था। पिछले कुछ वर्षों से बांग्ला भाषा में लिखे नाम को हटा दिया गया है। ऐसा होना अत्यंत अव्यावहारिक है। इन क्षेत्रों के निवासियों की मांग है कि संबंधित रेलवे स्टेशनों के नाम बांग्ला भाषा में अंकित की जाए।
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