इस वर्ष 22 जुलाई, सोमवार से सावन का महीना प्रारंभ हो रहा है। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। देवों के देव महादेव शिव एक मात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मान्यता है कि शिव-पार्वती सावन में पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। शास्त्रों के अनुसार राजा दक्ष की नगरी और शिवजी की ससुराल कनखल में है, जो हरिद्वार के पास ही है। यहीं पर स्थित है दक्षेश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है कि दक्ष प्रजापति मंदिर में जो भक्त भगवान शिव का सच्चे मन से 40 दिन जलाभिषेक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव-पार्वती सावन में पृथ्वी पर क्यों आते हैं इसके पीछे एक रोचक कथा है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद को आमंत्रित नहीं किया। दक्ष के यज्ञ में जब आकाश मार्ग से सभी देवताओं को जाते हुए शिव की अर्धांगिनी और राजा दक्ष की पुत्री सती ने देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके पिता ने कोई यज्ञ का आयोजन किया है और सभी देवी देवता उसी में शामिल होने के लिए जा रहे हैं। तब सती ने भी अपने पति शिव से यज्ञ में जाने की जिद की, पर शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि जब हमें आमंत्रण नहीं मिला है तो वहां नहीं जाना चाहिए।
पितृ मोह में सती पति की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चलीं गईं, उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान तो यज्ञ में है पर उनके पति का नहीं है और उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर को त्याग दिया।
सती के यज्ञ कुंड में खुद को दाह कर लेने का जब शिवजी को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया। शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया। इससे समस्त देवताओं में हाहाकार मच गया। फिर सभी देवताओं ने शिव की स्तुति की एवं स्वयं ब्रह्मा जी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया। जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया, पर उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए। इस पर एक बकरे के सिर को काटकर उनके धड़ पर लगाया गया। इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास यहीं पर रहने का दक्ष को वचन दिया।