विदेशी पक्षियों को दलमा और आसपास के जलाशय खूब भाते हैं। नवंबर में इनका आना शुरू होता है और मार्च में ये लौट जाते हैं। इस बार 36 प्रकार के विदेशी पक्षियों की पहचान हो चुकी है। प्रसेनजीत सरकार कहते हैं कि यहां के जलाशयों में पाई जाने वाली मछलियां, उनके दाने, कई तरह के जलीय पादप बहुतायत में पाए जाते हैं। यही कारण है कि हजारों किलोमीटर दूरी तय कर ये विदेशी मेहमान यहां चले आते हैं। जमशेदपुर के डीएफओ डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि दलमा व इसके आसपास का इलाका इको सेंसेटिव जोन के रूप में चिह्नित है। यही कारण है कि पक्षियों को सुरक्षा भी मिलती है। शिकार व शिकारी नहीं होने के कारण पक्षी आराम से चार माह यहां गुजारते हैं।
हाथियों के लिए मुफीद दलमा एलिफेंट सेंक्चुरी की पहचान न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश भर में है। यहां की हसीन वादियों का सैर करने हर साल दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। अब इन पर्यटकों के लिए विदेशी पक्षी भी कौतूहल का विषय बन रहे हैं। यहां के कई जलस्रोत विदेशी पक्षियों से गुलजार हैं। मंगोलिया, अलास्का, साइबेरिया और रूस से आए ये पक्षी जलस्रोतों की सुंदरता बढ़ाते हैं। इनमें कई प्रकार के पक्षी शामिल हैं। अब विदेशी मेहमान पर्यटकों की भीड़ जलाशयों के पास जुटाते हैं।
पक्षी विशेषज्ञ प्रोफेसर केके शर्मा और प्रसेनजीत सरकार समय-समय पर अपनी टीम के साथ इन विदेशी पक्षियों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। वे कहते हैं कि अब कॉमन पोचार्ड, टफ्टेड डक, रेड क्रियटेड पोचार्ड, रूडी शेलडक व गैडवाल आदि पक्षी चांडिल डैम, सीतारामपुर डैम, खरकई नदी, स्वर्णरेखा नदी, दलमा जंगल के लायलम क्षेत्र में देखे जाते हैं। प्रसेनजीत सरकार कहते हैं कि यदि सरकार वेटलैंड व प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने में कामयाबी हासिल कर ले तो विदेशी पक्षियों के आने-जाने का यह सिलसिला निरंतर जारी रहेगा। इनकी सुरक्षा और प्राकृतिक वातवरण को सुरक्षित रखने की जरूरत है