Seraikela Bridge Safety: सरायकेला-खरसावां जिले के मनिकुई से चांडिल को जोड़ने वाला पुल आज एक बड़े हादसे को निमंत्रण दे रहा है। यह पुल किसी तकनीकी या युद्धकालीन क्षेत्र में नहीं, बल्कि झारखंड के आम ग्रामीण क्षेत्र में है — जहां से हर दिन सैकड़ों वाहन, स्कूल के बच्चे, मजदूर और ग्रामीण लोग आवाजाही करते हैं।
लेकिन प्रशासन की चुप्पी और लोक निर्माण विभाग की अनदेखी ने इसे एक “चलती फिरती मौत” में तब्दील कर दिया है।स्थानीय लोगों की माने तो यह पुल वर्षों से जर्जर हालत में है।
लोहे की ग्रिलें टूट चुकी हैं, सड़क पर पड़े गड्ढे अब खतरनाक गड्ढों में बदल गए हैं, और बारिश के मौसम में यह स्थिति और भयावह हो जाती है। हालात ऐसे हैं कि एक गलती किसी बड़े जानमाल के नुकसान में बदल सकती है। इसके बावजूद जिला प्रशासन और संबंधित विभागों ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
स्थानीय आक्रोश और खतरे की घंटी
पुल से गुजरते स्कूली छात्रों और साइकिल सवार ग्रामीणों की सुरक्षा हर दिन दांव पर लगी होती है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन को बार-बार ज्ञापन सौंपने, मीडिया में खबर छपवाने और जन प्रतिनिधियों से आग्रह करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है और स्थिति कभी भी उग्र आंदोलन में बदल सकती है।
पुल पर भारी वाहनों की आवाजाही तो रोजमर्रा का हिस्सा है, लेकिन इसकी क्षमता अब शायद साइकिल सवारों को भी सुरक्षित पार नहीं करा सकती। कई बार वाहन फंस चुके हैं और ट्रकों के पलटने की भी घटनाएं हुई हैं। लोगों का कहना है कि अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह पुल एक दिन कोई बड़ा हादसा कर बैठेगा।
प्रशासन की चुप्पी और राजनीति की दूरी
सरायकेला जिला प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा भी इस मुद्दे को विधानसभा में उचित प्राथमिकता नहीं दी गई है। यह दर्शाता है कि ग्रामीण समस्याएं राजनीतिक एजेंडे में आज भी हाशिए पर हैं। एक ओर सरकार स्मार्ट सिटी और सड़क सुरक्षा की बात करती है, वहीं दूसरी ओर गांवों के वास्तविक हालात इन दावों की पोल खोलते हैं।