Kharsawan Waterlogging: खरसावां — स्थानीय हाट परिसर गुरुवार और शनिवार को लगने वाला सप्ताहिक बाज़ार कीचड़, गन्दगी और गंदे पानी से जूझ रहा है। बाज़ार परिसर में भरा कीचड़ तथा निकासी न होने के कारण दुकानदारों और ग्रामीणों को शर्मनाक तौर पर आवागमन करना पड़ रहा है। हालात इतने बिगड़े हैं कि नाली का गंदा पानी सड़क पर बहता रहता है, जिससे गंदगी और दुर्गंध दोनों फैल रही है।

व्यवसाय और स्थानीय लोग परेशान
हाट में दुकान लगाने वाले छोटे व्यापारी बताते हैं कि कीचड़मय रास्ते से ग्राहकों की आवाजाही मुश्किल हो गई है, कई बार खरीदार आते हैं और फिर लौट जाते हैं। दूर-दराज के ग्रामीण भी महीने भर से इस कीचड़ और गंदगी के चलते हाट छोड़कर लौट रहे हैं। साफ-सफाई का कोई इंतजाम न होने पर समग्र व्यापार प्रभावित हो रहा है।

प्रशासन का मौन
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के मौन रहने से लोग काफी आक्रोशित हैं। प्रशासन तक शिकायतों के दर्ज होने के बावजूद साफ-सफाई और जल निकासी को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। आसपास की नालियों में जमा गंदा पानी सड़क पर बहता है लेकिन सुधार के उपाय नहीं किए जा रहे।

स्वास्थ्य जोखिम और जवाबदेही की मांग
गंदगी और जलभराव से तेजी से बीमारी का डर मंडरा रहा है। दुकानदार और ग्रामीण प्रशासन से सक्रिय हस्तक्षेप, नालियों की सफाई और शीघ्र नाली परियोजना की मांग कर रहे हैं, ताकि साप्ताहिक हाट फिर से व्यवस्थित तरीके से चल सके।

व्यापार और ग्राहक समस्याएँ
हाट में दुकान लगाने वाले छोटे एवं मध्यम व्यापारी अब इस कीचड़युक्त माहौल में कार्य करना पसंद नहीं करते। ग्राहकों का रुझान कम हो गया है क्योंकि सफाई न होने के चलते बड़े पैमाने पर लोग लौटते हुए दिखाई दे रहे हैं। दूरदराज के ग्रामीण जो बाजार में खरीदारी के लिए आते हैं, वे भी इन हालात से दुखी हैं।
ग्रामीणों की समस्या सिर्फ आवागमन तक सीमित नहीं, बल्कि व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है—प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक उपेक्षा स्पष्ट रूप से दिख रही है।

नालनुमा जल सीमित सफाई व्यवस्था
निकासी न होने के कारण कीचड़ स्थिर रूप से जमा हो गया है। आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि नालियों का गंदा पानी सड़क पर घुल-मिल रहा है, जिससे दुर्गंध से स्वच्छता का सवाल ही नहीं उठता। स्थानीय ठेकेदार या नगरपालिका द्वारा कीचड़ हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
यह स्थिति वैश्विक स्वच्छता अभियानों से बिल्कुल विपरीत है, जहाँ स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं से नागरिकों की उम्मीदें उठी थीं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौती
स्थानीय लोग और व्यापारी जलभराव और गंदगी से संबंधित बीमारियों जैसे हैजा, डायरिया और त्वचा संक्रमण के खतरे से चिंतित हैं। जदयू कार्यकर्ता सुरेश चौधरी ने कहा था कि इस तरह के जलभराव से हैजा फैलने का डर बना रहता है और सरकारी राजस्व मिलने के बावजूद जिम्मेदारी टाली जाती है। खरसावां केस में भी यह चिंता साफ दिख रही है।

अब क्या किया जाए — स्पष्ट मांगें
- नालियों की तत्काल सफाई और जल निकासी का कार्य
- कीचड़ हटाने के लिए अस्थायी सफाई कर्मी तैनात
- नियमित रूप से डंपिंग और हाट परिसर की निगरानी
- प्रशासन और ठेकेदार के बीच साफ समझौता—हाट के दौरान सुनिश्चित सफाई
- सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय और सफाई निर्देशों का पालन