Saranda Mining Row: सरकार भ्रम न फैलाए‚ सारंडा पर सच्चाई जनता को बताए

Saranda Mining Row: जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने राज्य सरकार पर सारंडा के मुद्दे पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार को सारंडा सघन वन क्षेत्र में खनन, पर्यावरण और संरक्षण से जुड़ी वस्तुस्थिति जनता के सामने रखनी चाहिए। राय ने कहा कि

Facebook
X
WhatsApp

Saranda Mining Row: जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने राज्य सरकार पर सारंडा के मुद्दे पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार को सारंडा सघन वन क्षेत्र में खनन, पर्यावरण और संरक्षण से जुड़ी वस्तुस्थिति जनता के सामने रखनी चाहिए। राय ने कहा कि सरकार के वन, खान, उद्योग और वित्त विभागों के बीच आपसी विरोधाभास इस संवेदनशील मुद्दे पर स्पष्ट नीति बनने में बाधा बन रहा है।

सारंडा के तीन वर्किंग प्लान बने, पर अध्ययन नहीं हुआ

सरयू राय ने कहा कि सारंडा में लौह अयस्क का खनन वर्ष 1909 से हो रहा है। वन विभाग ने इसके लिए तीन वर्किंग प्लान बनाए — पहला 1936–1956 तक एस.एफ. मुनी, दूसरा 1956–1976 तक जे.एन. सिन्हा, और तीसरा 1976–1996 तक राजहंस द्वारा तैयार किया गया।
उन्होंने सवाल उठाया कि 1996 के बाद सरकार ने नया वर्किंग प्लान क्यों नहीं बनाया, जबकि पुराने दस्तावेज़ों में वन भूमि संरक्षण और खनन गतिविधियों का पूरा ब्यौरा मौजूद है।

2009 में सुधीर महतो ने भेजा था अभग्न क्षेत्र प्रस्ताव

राय ने बताया कि 2003 में केंद्र सरकार के डीजी फॉरेस्ट के निर्देश पर राज्यों ने वनों की सुरक्षा पर रिपोर्ट तैयार की। झारखंड में इसका अध्ययन तीन वर्षों तक चला।
उस दौरान मधु कोड़ा सरकार में वन मंत्री सुधीर महतो ने सारंडा के 851 वर्ग किमी में से 630 वर्ग किमी को अभग्न क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव दिया था, जहां कोई विनाशकारी गतिविधि नहीं हो सकती। लेकिन सरकार ने आज तक उस प्रस्ताव को न स्वीकारा, न अस्वीकारा, जो गंभीर लापरवाही है।

खनन लीज और अवैध खनन पर सवाल

राय ने याद दिलाया कि मधु कोड़ा शासनकाल में राज्य सरकार ने इतनी खनन लीजें स्वीकृत कीं कि उनका कुल क्षेत्रफल सारंडा के पूरे इलाके से अधिक हो गया। उन्होंने कहा कि उन्होंने उस समय अवैध खनन का मामला उठाया था, पर कार्रवाई नहीं हुई।
बाद में, 2010 में जस्टिस एम.बी. शाह कमेटी, 2011 में इंटीग्रेटेड वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान समिति, और 2014 में कैरिंग कैपेसिटी अध्ययन समूह ने सारंडा में खनन के प्रभाव और पर्यावरण संरक्षण पर रिपोर्टें दीं, पर राज्य सरकार ने किसी पर अमल नहीं किया।

सेल पर पर्यावरण उल्लंघन का आरोप

राय ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सारंडा में सबसे बड़ा लौह अयस्क खनन लीज सेल के पास है, जिसने माइनिंग के दौरान “सैंक्चुअरी विरोध” में सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दी।
उन्होंने कहा कि सेल ने कन्वेयर बेल्ट से ट्रांसपोर्टेशन का वादा किया था, पर आज तक काम नहीं हुआ। उल्टे, चिंडिया से मनोहरपुर तक वन मार्ग को बिना पर्यावरण स्वीकृति चौड़ा कर यातायात मार्ग बना दिया गया, जिससे वन्यजीव और ग्रामीणों को नुकसान हुआ।

नदियां लाल हुईं, प्रदूषण चरम पर

सरयू राय ने कहा कि सारंडा की दो प्रमुख नदियां कारो और कोयना, लौह अयस्क खनन से बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं। उनका पानी अब पूरी तरह लाल हो गया है, जिससे इंसानों और जानवरों दोनों को खतरा है। उन्होंने कहा – “जब सारंडा में उग्रवाद चरम पर था, तब पूछा जाता था कि लाल सलाम ज्यादा खतरनाक है या लाल पानी? सभी कहते थे — लाल पानी।”

सरकार को सस्टेनेबल माइनिंग नीति अपनानी चाहिए

राय ने कहा कि पूरा सारंडा रिजर्व फॉरेस्ट है और यहां कोई भी खनन कार्य पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बिना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि सरकार सैंक्चुअरी प्रस्ताव पर राजनीतिक हाय-तौबा मचाने के बजाय माइनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट का अध्ययन करे, जिसमें स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि कैसे खनन और संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं।

खनन लीज पर सरकार की उदासीनता

उन्होंने बताया कि 2017 में केंद्र सरकार ने माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट रेगुलेशन में संशोधन किया, जिसके बाद निजी खनन लीज 2020 तक और औद्योगिक इकाइयों की लीज 2030 तक सीमित कर दी गई।
उन्होंने कहा कि पड़ोसी उड़ीसा ने एक साल में सभी खदानों की नीलामी (auction) पूरी कर ली, जबकि झारखंड सरकार अब तक निष्क्रिय है।
राय ने कहा कि अगर सरकार चाहे तो पड़ी हुई लौह अयस्क की बिक्री से 300 करोड़ रुपये की आमदनी हो सकती है, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया।


भविष्य के लिए सुझाव

राय ने कहा कि यदि सरकार सच में चाहती है कि सारंडा में सस्टेनेबल माइनिंग हो, तो उसे पूर्व कमेटियों की रिपोर्टों का अध्ययन कर स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। “सरकार को अपने गिरेबान में झांकना होगा,” उन्होंने कहा, “सारंडा के विकास और संरक्षण दोनों को साथ लेकर चलने का यही एकमात्र रास्ता है।”



TAGS
digitalwithsandip.com