Kurmi ST protest: रांची के प्रभात तारा मैदान में शुक्रवार को आदिवासी जन आक्रोश रैली के नाम से आयोजित एक विशाल सभा में झारखंड सहित देश के छह राज्यों के आदिवासी समुदायों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हजारों की संख्या में आदिवासी प्रतिनिधियों ने कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने की मांग के विरोध में जोरदार प्रदर्शन किया।इस रैली में झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, मणिपुर और छत्तीसगढ़ की लगभग 32 जनजातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए। मैदान में पारंपरिक वेशभूषा, ढोल-नगाड़ों और नारों के बीच आदिवासी समाज की एकजुटता और अपनी पहचान बचाने की दृढ़ता साफ झलक रही थी।
रैली के मंच से पूर्व मंत्री गीता उरांव, देव कुमार धान समेत कई प्रमुख आदिवासी नेताओं ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों को तीखा संदेश दिया। गीता उरांव ने अपने संबोधन में कहा —> “आदिवासी कोई बनता नहीं, बल्कि जन्म से होता है। अगर कुड़मी समाज झूठे तथ्यों के आधार पर जनजाति का दर्जा पाने की कोशिश करेगा, तो आदिवासी समाज सड़कों पर उतर आएगा।”
देव कुमार धान और अन्य वक्ताओं ने चेताया कि यह सिर्फ शुरुआत है, और यदि सरकार ने कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल करने की दिशा में कदम बढ़ाया, तो राज्यव्यापी और राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।
यह विवाद 20 सितंबर से तब शुरू हुआ जब कुड़मी समाज ने ‘रेल रोको आंदोलन’ के तहत खुद को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग उठाई थी। आंदोलन के बाद से ही झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में आदिवासी संगठनों ने विरोध तेज कर दिया।
रांची की यह रैली उसी श्रृंखला का हिस्सा थी, जिसमें आदिवासी समुदायों ने अपनी एकता का प्रदर्शन करते हुए स्पष्ट कहा कि यह “अस्तित्व की लड़ाई” है और इसे किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटाया जाएगा।
प्रभात तारा मैदान में जनसैलाब का दृश्य अद्भुत था — पारंपरिक झंडों, गीतों और नारों के बीच हजारों आदिवासियों ने एक स्वर में कहा,
“अबकी बार, अस्तित्व की लड़ाई आर-पार।”
रैली के अंत में नेताओं ने कहा कि यह संघर्ष केवल कुड़मी समाज के मुद्दे का विरोध नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का आंदोलन है।