Jamshedpur Protest: जमशेदपुर में नगर निगम सीमा विस्तार की योजना के खिलाफ आदिवासी समुदाय ने खुलकर विरोध जताया है। मंगलवार को पोटका प्रखंड के हल्दीपोखर और आस-पास के दर्जनों गाँवों के ग्राम प्रधानों और ग्रामीणों ने एकजुट होकर ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित किया कि वे किसी भी कीमत पर अपनी पारंपरिक ज़मीन को नगर निगम क्षेत्र में शामिल नहीं होने देंगे।
यह विरोध सिर्फ एक प्रशासनिक योजना के खिलाफ नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता, परंपरा और भूमि अधिकारों की रक्षा का प्रतीक बन चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर उनकी जमीनें नगर निगम के तहत आ जाती हैं, तो शहरीकरण की आड़ में उनके स्वशासन, संस्कृति और जीवनशैली को खतरा होगा।
कानूनी और सामाजिक तर्क ग्रामसभा के नेताओं ने साफ़ तौर पर कहा कि यह कदम छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (SPT Act) का उल्लंघन है। ये कानून आदिवासी क्षेत्रों में भूमि की रक्षा करते हैं और किसी भी बाहरी व्यक्ति या संस्था को भूमि खरीदने या हस्तांतरित करने की अनुमति नहीं देते।
ग्रामसभा में पास किए गए प्रस्ताव में यह भी लिखा गया कि किसी भी प्रकार की योजना अगर ग्रामसभा की सहमति के बिना बनाई जाती है, तो वह संविधान की पाँचवीं अनुसूची और पेसा कानून का उल्लंघन होगा। इसीलिए ग्रामसभा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी प्रकार की जबरन अधिसूचना या नगरपालिका विस्तार को स्वीकार नहीं करेंगे।
शहरीकरण बनाम आत्मनिर्भरता नगर निगम विस्तार को लेकर सरकार का तर्क है कि इससे क्षेत्र में बेहतर सुविधाएं और बुनियादी ढांचा मिलेगा। लेकिन आदिवासी समाज का कहना है कि वे स्वशासन के अपने परंपरागत ढांचे में खुश हैं, और बाहर से थोपे गए शहरी तंत्र से उन्हें केवल टैक्स, कानूनी जटिलताएं और भूमि लूट का खतरा है।
ग्राम प्रधानों ने आरोप लगाया कि पहले भी कई इलाकों में बिना ग्रामसभा की अनुमति लिए अधिसूचनाएं जारी की गईं, जिनका परिणाम यह हुआ कि आदिवासी ग्रामीणों की जमीनें उद्योगों और शहरी आवासीय योजनाओं में बदल दी गईं। ऐसे में अब वे पहले से अधिक सतर्क हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और आगे की राह प्रशासन की ओर से इस मुद्दे पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में हलचल तेज हो गई है। झारखंड में पहले भी इस तरह के नगर विस्तार और भूमि अधिग्रहण के मामलों ने आंदोलन का रूप लिया है, जैसे कि कोडरमा, खूंटी और बोकारो में देखा गया।आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर ग्रामसभा की मांगें नहीं मानी गईं तो वे उलगुलान की राह पर जाएंगे और उग्र आंदोलन करेंगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा और अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी इस मसले पर समर्थन जताया है और सरकार से स्पष्ट नीति लाने की मांग की है।