Holi: होली का त्योहार, जो फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, एक पवित्र पर्व है जो दुष्ट प्रवृत्तियों और अमंगल विचारों का नाश कर सत् प्रवृत्ति का मार्ग दिखाता है। यह त्योहार संपूर्ण देश में बड़े हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है।
होली का इतिहास
प्राचीन काल में ढूंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी गांव में प्रवेश कर छोटे बच्चों को कष्ट पहुंचाती थी। लोगों ने उसे गांव से बाहर निकालने के लिए बहुत प्रयास किए; परंतु उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। अंततः लोगों ने उसे घिनौनी गालियां और शाप देकर, साथ ही सर्वत्र अग्नि प्रज्वलित कर भयभीत कर भगा दिया’, ऐसा भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है।
होली का महत्त्व
होली अपने दोषों, व्यसनों और बुरी आदतों को दूर करने का तथा सद्गुणों को ग्रहण करने का अवसर है। यह त्योहार विकारों की होली जलाकर जीवन में आनंद की वर्षा करने की सीख देने वाला त्योहार है।
होली की पूजा की पद्धति
होली की पूजा करने के लिए संपूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की संस्कृति अनुसार होलिका दहन हेतु मध्य में एरंड, नारियल का पेड़, सुपारी का पेड़ अथवा गन्ना खड़ा किया जाता है। उसके चाराें ओर उपले और सूखी लकड़ियों की रचना की जाती है। घर के मुख्य पुरुष को शुचिर्भूत होकर और देश काल् का उच्चारण कर ‘सकुटुम्बस्य मम ढुण्ढाराक्षसीप्रीत्यर्थं तत्पीडापरिहारार्थं होलिका पूजनमहं करिष्ये ।’ का संकल्प लेकर उसके उपरांत पूजा कर भोग लगाना चाहिए और उसके उपरांत ‘होलिकायै नमः’ बोलकर होली प्रज्वलित करनी चाहिए।
होली के दूसरे दिन किए जाने वाले धार्मिक कृत्य
होली के दूसरे दिन प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपत्सु विभूतये ।कृत्वा चावश्यकार्याणि सन्तर्प्य पितृदेवताः॥ वन्दयेत् होलिकाभूतिं सर्वदुष्टोपशान्तये। – स्मृतिकौस्तुभ अर्थ : वसंत ऋतु की प्रथम प्रतिपदा के दिन समृद्धि प्राप्त हो; इसके लिए सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्वजों को तर्पण करें और उसके उपरांत सभी दुष्ट शक्तियों की शांति के लिए होलिका की विभूति को वंदन करना चाहिए।