High Court Decision: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में व्यभिचार के मामले में आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने अपने फैसले में कहा कि महिलाएं पति की संपत्ति नहीं होती हैं और उन्हें अपने निर्णय लेने का अधिकार है।
कोर्ट ने महाभारत की द्रौपदी का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे पुराने समय की पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को पति की संपत्ति के रूप में देखती थी। यह मानसिकता अब असंवैधानिक और अस्वीकार्य है।
क्या था मामला?
एक पति ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया था कि उसका एक व्यक्ति के साथ अवैध संबंध है। पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी और आरोपी एक साथ दूसरे शहर गए, होटल में ठहरे और उसके (पति) की अनुमति के बिना यौन संबंध बनाए।
कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि व्यभिचार को अपराध मानने वाला पुराना कानून विवाह की पवित्रता की रक्षा नहीं करता था, बल्कि केवल पति के ‘स्वामित्व के अधिकार’ को मान्यता देता था। कोर्ट ने कहा कि यह सोच अब बदल गई है और महिलाओं को अपने निर्णय लेने का अधिकार है।
इस फैसले में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया गया था। यह धारा एक पुरुष द्वारा विवाहित महिला के साथ संबंध बनाने को अपराध मानती थी, परंतु केवल इस आधार पर कि महिला के पति की अनुमति नहीं ली गई।
अदालत ने कहा कि द्रौपदी की स्थिति इस बात का उदाहरण है कि कैसे महिलाओं के साथ संपत्ति के रूप में व्यवहार किया जाता था और उनके पास अपनी गरिमा के लिए विरोध करने का कोई अधिकार नहीं था। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।