Gamharia Railway Death: हत्या या दुर्घटना – अब भी सवालों के घेरे मेंगम्हारिया प्रखंड के कोलबीरा ओपी क्षेत्र अंतर्गत बीरबांस रेलवे फाटक पर 21 मई को शक्तिधर कुम्भकार (35 वर्ष), निवासी बीरबांस गांव, का शव संदिग्ध परिस्थिति में मिला था।
इस घटना ने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया, वहीं मृतक के परिजनों ने तत्काल हत्या की आशंका जताते हुए थाना में आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई थी। लेकिन घटना को 50 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाई है, जिससे परिवार में रोष व्याप्त है।
परिजनों की पीड़ा: न्याय की राह में बाधाएंआज मृतक शक्तिधर कुम्भकार की पत्नी और अन्य परिजन एसपी कार्यालय पहुंचे और मामले की निष्पक्ष व त्वरित जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि वे लगातार न्याय के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन हर बार पुलिस की ओर से टालमटोल और लापरवाही ही देखने को मिली है।
परिजनों का कहना है कि मौत के बाद उन्होंने तुरंत आवेदन दिया था, फिर भी पुलिस छह दिन बाद घटनास्थल पर जांच करने पहुंची। इतना ही नहीं, जांच अधिकारी अक्सर कॉल रिसीव नहीं करते, जिससे संवाद और पारदर्शिता की गंभीर कमी बनी हुई है।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया और जांच की स्थिति एसपी ने परिजनों को बताया कि इस केस के जांच अधिकारी फिलहाल देवघर ड्यूटी पर गए हुए हैं, जिसकी वजह से जांच प्रक्रिया में विलंब हो रहा है। हालांकि उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि अधिकारी की वापसी के बाद जांच तेज की जाएगी। फिर भी परिजनों को भरोसा नहीं है क्योंकि शुरुआत से ही पुलिस प्रशासन की कार्यशैली संदेहास्पद रही है।
समाज का आक्रोश और आंदोलन की चेतावनी समाजसेवी नारायण महतो ने भी इस मामले में प्रशासन की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि जब तक दोषियों को चिन्हित कर कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक यह घटना न्याय प्रणाली की विफलता का प्रतीक बनी रहेगी। महतो ने यह भी चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो बीरबांस गांव के ग्रामीण एसपी कार्यालय के समक्ष भूख हड़ताल पर बैठने को विवश होंगे।
निष्क्रियता की कीमत कौन चुकाएगा?
यह मामला केवल एक व्यक्ति की संदिग्ध मौत का नहीं है, बल्कि न्याय व्यवस्था की कार्यशैली और पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी पर एक बड़ा सवाल है। शक्तिधर कुम्भकार की पत्नी आज भी इंसाफ के लिए दर-दर भटक रही है, जबकि संभावित आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या 50 दिनों का लंबा इंतजार भी पर्याप्त नहीं था कि अब भी कार्रवाई का इंतजार हो?