Chandil Gram Sabha:झारखंड के चांडिल प्रखंड अंतर्गत आने वाले अनुसूचित क्षेत्र ग्राम शहरबेड़ा में सामाजिक असंतोष का माहौल बनता जा रहा है। यहां ग्राम सभा के सदस्यों ने एकजुट होकर गैर-जनजातीय ग्राम प्रधान रविन्द्र नाथ तंतुबाई को पद से हटाने की मांग करते हुए अंचल अधिकारी चांडिल को औपचारिक ज्ञापन सौंपा।
इस ज्ञापन में झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 8(3) तथा भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची का हवाला देते हुए नियुक्ति को संवैधानिक और पारंपरिक मर्यादाओं का उल्लंघन बताया गया है।ग्राम सभा की आपत्ति का मुख्य आधार यह है कि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता केवल अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाला व्यक्ति ही कर सकता है, जो स्थानीय परंपरागत व्यवस्थाओं के अंतर्गत मान्यता प्राप्त हो—जैसे मांझी, मुंडा, पाहन या लाया आदि। श्री रविन्द्र नाथ तंतुबाई न तो अनुसूचित जनजाति से आते हैं और न ही पारंपरिक ग्राम व्यवस्था में उनका कोई स्थान है।
ग्राम सभा ने अपने ज्ञापन में तीन प्रमुख मांगें रखी हैं: गैर-जनजातीय ग्राम प्रधान रविन्द्र नाथ तंतुबाई को तत्काल पद से हटाया जाए।परंपरागत रीति-रिवाजों के अनुसार किसी योग्य जनजातीय व्यक्ति को ग्राम प्रधान के रूप में मनोनीत किया जाए।वर्तमान ग्राम प्रधान को दी जा रही मानदेय और प्रोत्साहन राशि पर तत्काल रोक लगाई जाए।इसके साथ ही ग्राम सभा ने 15 दिनों का अल्टीमेटम भी जारी किया है।
उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि तय समय सीमा के भीतर प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो वे न्यायालय की शरण लेंगे और प्रशासनिक अधिकारियों पर लापरवाही का मामला दायर करेंगे।
गांव में असंतोष का माहौल: शहरबेड़ा गांव में यह मुद्दा अब लोगों की चर्चा का केंद्र बन चुका है। कई ग्रामीणों ने कहा कि उनके पारंपरिक अधिकारों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है। उनका कहना है कि संविधान और राज्य के कानून दोनों ही अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय स्वशासन की गारंटी देते हैं, लेकिन प्रशासनिक तंत्र उसे नजरअंदाज कर रहा है।प्रतिनिधिमंडल में ये सदस्य रहे शामिल:ज्ञापन सौंपने गए प्रतिनिधिमंडल में बाबू राम सोरेन, बसुदेव प्रमाणिक, गुरुपद सिंह सरदार, चंद्र भूषण सिंह (लाया), पंकज हेम्ब्रम और निमाई सिंह जैसे प्रमुख ग्राम सभा सदस्य उपस्थित थे।
क्या कहता है कानून?झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 8(3) स्पष्ट रूप से कहती है कि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा का प्रमुख केवल जनजातीय समुदाय का सदस्य हो सकता है। इसके अलावा संविधान की 5वीं अनुसूची में जनजातीय स्वायत्तता और उनके परंपरागत अधिकारों की रक्षा की बात कही गई है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया: फिलहाल प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार अंचल कार्यालय इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए कानूनी राय लेने की प्रक्रिया में जुटा है।
यह मामला ना केवल एक गांव की आवाज है, बल्कि झारखंड के उन सभी अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक मिसाल बन सकता है जहां पारंपरिक व्यवस्थाओं को दरकिनार कर प्रशासनिक मनमानी हो रही है।