हाईकोर्ट ने दो दिन पहले रिम्स में स्वास्थ्य सुविधा और आधारभूत संरचना की बदहाली को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें स्वास्थ्य सचिव ने कहा था कि रिम्स प्रीमियर इंस्टीट्यूट है। वहीं, रिम्स निदेशक ने कहा था कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरणों को दुरुस्त करने का प्रयास जारी है। दैनिक भास्कर ने रिम्स के इस दावे की पड़ताल की। पता चला कि रिम्स में जरूरत के हिसाब से 65% मैनपावर की कमी है। अस्पताल में करीब 300 वरीय चिकित्सकों की जरूरत है, जबकि वर्तमान में 162 ही कार्यरत हैं। पिछले दो साल में तीन दर्जन के करीब सेवानिवृत्त हो गए, आने वाले दो सालों में करीब दर्जन भर चिकित्सक रिटायर हो जाएंगे। इसके अलावा फोर्थ ग्रेड में 596 पद सृजित हैं, जबकि कार्यरत मात्र 94 हैं। शेष में आउटसोर्स पर काम लिया जा रहा है। थर्ड ग्रेड के 318 पदों की तुलना में 234 ही कार्यरत हैं। नर्सिंग के 747 पदों के मुकाबले 305 ही सेवा दे रही हैं। रिम्स निदेशक के अनुसार, रिम्स में जरूरत करीब 3500 स्टाफ की है, इसमें चिकित्सक-नर्स से लेकर अन्य कर्मी शामिल हैं। जबकि रिम्स में 35% से भी कम कर्मी कार्यरत हैं। समय पर जांच नहीं होने से टाले जा रहे ऑपरेशन रिम्स में अधिकांश गरीब व बीपीएल श्रेणी के रोगी पहुंचते हैं। कई बार समय पर जांच नहीं होने के कारण सर्जरियां भी टालने की नौबत आ जाती है। आयुष्मान भारत योजना के तहत भर्ती मरीजों को 15 से 20 दिन तक सिर्फ इम्प्लांट के लिए इंतजार करना पड़ता है। दैनिक भास्कर ने 6 विभागों की पड़ताल की। ऑर्थोपेडिक विभाग में 14 मरीज मिले, जो 15 दिन से अधिक समय से भर्ती हैं। कभी जांच तो कभी सामान नहीं आया बताकर ऑपरेशन टाले जा रहे हैं। सर्जरी विभाग में 21 और न्यूरोसर्जरी विभाग में 11 मरीज भर्ती हैं। सीटीवीएस, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी समेत अन्य विभागों में भी मरीज ऑपरेशन के इंतजार में हैं। न्यूरो सर्जरी का एक्सटेंशन वार्ड खुला, फिर भी मरीज फर्श पर निदेशक ने रिम्स में सेवा देते ही पुराने भवन का निरीक्षण किया था, फर्श में मरीजों का इलाज होता देख भड़के भी थे। उन्होंने आदेश जारी किया था कि तत्काल प्रभाव से बेड मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया जाए। जिस वार्ड में बेड खाली हों, मरीजों को बेड अलॉट किया जाए। लेकिन आज भी स्थिति वैसी ही है। प्रबंधन ने न्यूरो सर्जरी के लिए एक्सटेंशन वार्ड भी खोला। बावजूद आज भी मरीज न्यूरो सर्जरी विभाग के फर्श पर रह कर इलाज कराने को विवश हैं। 7 से 8 एक्सरे मशीनें भी हैं खराब रिम्स के रेडियोलॉजी विभाग की 7 से 8 एक्सरे मशीनें खराब हैं। एक ही एक्सरे मशीन से जांच की जा रही है, जबकि विभागों में पोर्टेबल मशीन के सहारे जांच हो रही है। मालूम हो कि रोजाना 600 मरीज एक्सरे के लिए आते हैं। इनमें 150 रिम्स में भर्ती मरीज होते हैं। एक्सरे नहीं होने से इलाज में देरी होती है। अल्ट्रासाउंड मशीन की कमी रिम्स में छह अल्ट्रासाउंड मशीन की जरूरत है, जबकि तीन ही हैं। इसमें भी दो मशीन अधिकांश समय खराब पड़ी रहती है। अस्पताल में हर दिन करीब 400 रोगियों को अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है। इसमें करीब 300 आउटडोर मरीज, जबकि 100 भर्ती मरीज शामिल हैं। निदेशक बोले- मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने का प्रयास जारी एमआरआई मशीन दो साल से खराब रिम्स में करीब दो साल से एमआरआई जांच बंद है। जो मशीन थी, वह काफी पुरानी हो चुकी थी। मशीन हर माह में दो से तीन बार खराब होती थी। इसकी कई बार मरम्मत कराई गई। फिर, प्रबंधन ने दो साल से इस मशीन की मरम्मत करानी भी छोड़ दी, क्योंकि कंपनी ने मरम्मत का खर्च कई लाख रुपए बताया। निदेशक का दावा: करीब पांच करोड़ रुपए की मशीन की खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। मशीनों को भेजने का आदेश कंपनियों को दिया जा रहा है। 30 एनेस्थीसिया की वर्क स्टेशन मशीन मंगाई जा रही है, इससे ऑपरेशन की रफ्तार तेज होगी।
हाईकोर्ट ने दो दिन पहले रिम्स में स्वास्थ्य सुविधा और आधारभूत संरचना की बदहाली को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें स्वास्थ्य सचिव ने कहा था कि रिम्स प्रीमियर इंस्टीट्यूट है। वहीं, रिम्स निदेशक ने कहा था कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरणों को दुरुस्त करने का प्रयास जारी है। दैनिक भास्कर ने रिम्स के इस दावे की पड़ताल की। पता चला कि रिम्स में जरूरत के हिसाब से 65% मैनपावर की कमी है। अस्पताल में करीब 300 वरीय चिकित्सकों की जरूरत है, जबकि वर्तमान में 162 ही कार्यरत हैं। पिछले दो साल में तीन दर्जन के करीब सेवानिवृत्त हो गए, आने वाले दो सालों में करीब दर्जन भर चिकित्सक रिटायर हो जाएंगे। इसके अलावा फोर्थ ग्रेड में 596 पद सृजित हैं, जबकि कार्यरत मात्र 94 हैं। शेष में आउटसोर्स पर काम लिया जा रहा है। थर्ड ग्रेड के 318 पदों की तुलना में 234 ही कार्यरत हैं। नर्सिंग के 747 पदों के मुकाबले 305 ही सेवा दे रही हैं। रिम्स निदेशक के अनुसार, रिम्स में जरूरत करीब 3500 स्टाफ की है, इसमें चिकित्सक-नर्स से लेकर अन्य कर्मी शामिल हैं। जबकि रिम्स में 35% से भी कम कर्मी कार्यरत हैं। समय पर जांच नहीं होने से टाले जा रहे ऑपरेशन रिम्स में अधिकांश गरीब व बीपीएल श्रेणी के रोगी पहुंचते हैं। कई बार समय पर जांच नहीं होने के कारण सर्जरियां भी टालने की नौबत आ जाती है। आयुष्मान भारत योजना के तहत भर्ती मरीजों को 15 से 20 दिन तक सिर्फ इम्प्लांट के लिए इंतजार करना पड़ता है। दैनिक भास्कर ने 6 विभागों की पड़ताल की। ऑर्थोपेडिक विभाग में 14 मरीज मिले, जो 15 दिन से अधिक समय से भर्ती हैं। कभी जांच तो कभी सामान नहीं आया बताकर ऑपरेशन टाले जा रहे हैं। सर्जरी विभाग में 21 और न्यूरोसर्जरी विभाग में 11 मरीज भर्ती हैं। सीटीवीएस, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी समेत अन्य विभागों में भी मरीज ऑपरेशन के इंतजार में हैं। न्यूरो सर्जरी का एक्सटेंशन वार्ड खुला, फिर भी मरीज फर्श पर निदेशक ने रिम्स में सेवा देते ही पुराने भवन का निरीक्षण किया था, फर्श में मरीजों का इलाज होता देख भड़के भी थे। उन्होंने आदेश जारी किया था कि तत्काल प्रभाव से बेड मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया जाए। जिस वार्ड में बेड खाली हों, मरीजों को बेड अलॉट किया जाए। लेकिन आज भी स्थिति वैसी ही है। प्रबंधन ने न्यूरो सर्जरी के लिए एक्सटेंशन वार्ड भी खोला। बावजूद आज भी मरीज न्यूरो सर्जरी विभाग के फर्श पर रह कर इलाज कराने को विवश हैं। 7 से 8 एक्सरे मशीनें भी हैं खराब रिम्स के रेडियोलॉजी विभाग की 7 से 8 एक्सरे मशीनें खराब हैं। एक ही एक्सरे मशीन से जांच की जा रही है, जबकि विभागों में पोर्टेबल मशीन के सहारे जांच हो रही है। मालूम हो कि रोजाना 600 मरीज एक्सरे के लिए आते हैं। इनमें 150 रिम्स में भर्ती मरीज होते हैं। एक्सरे नहीं होने से इलाज में देरी होती है। अल्ट्रासाउंड मशीन की कमी रिम्स में छह अल्ट्रासाउंड मशीन की जरूरत है, जबकि तीन ही हैं। इसमें भी दो मशीन अधिकांश समय खराब पड़ी रहती है। अस्पताल में हर दिन करीब 400 रोगियों को अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है। इसमें करीब 300 आउटडोर मरीज, जबकि 100 भर्ती मरीज शामिल हैं। निदेशक बोले- मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने का प्रयास जारी एमआरआई मशीन दो साल से खराब रिम्स में करीब दो साल से एमआरआई जांच बंद है। जो मशीन थी, वह काफी पुरानी हो चुकी थी। मशीन हर माह में दो से तीन बार खराब होती थी। इसकी कई बार मरम्मत कराई गई। फिर, प्रबंधन ने दो साल से इस मशीन की मरम्मत करानी भी छोड़ दी, क्योंकि कंपनी ने मरम्मत का खर्च कई लाख रुपए बताया। निदेशक का दावा: करीब पांच करोड़ रुपए की मशीन की खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। मशीनों को भेजने का आदेश कंपनियों को दिया जा रहा है। 30 एनेस्थीसिया की वर्क स्टेशन मशीन मंगाई जा रही है, इससे ऑपरेशन की रफ्तार तेज होगी। हाईकोर्ट ने दो दिन पहले रिम्स में स्वास्थ्य सुविधा और आधारभूत संरचना की बदहाली को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें स्वास्थ्य सचिव ने कहा था कि रिम्स प्रीमियर इंस्टीट्यूट है। वहीं, रिम्स निदेशक ने कहा था कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरणों को दुरुस्त करने का प्रयास जारी है। दैनिक भास्कर ने रिम्स के इस दावे की पड़ताल की। पता चला कि रिम्स में जरूरत के हिसाब से 65% मैनपावर की कमी है। अस्पताल में करीब 300 वरीय चिकित्सकों की जरूरत है, जबकि वर्तमान में 162 ही कार्यरत हैं। पिछले दो साल में तीन दर्जन के करीब सेवानिवृत्त हो गए, आने वाले दो सालों में करीब दर्जन भर चिकित्सक रिटायर हो जाएंगे। इसके अलावा फोर्थ ग्रेड में 596 पद सृजित हैं, जबकि कार्यरत मात्र 94 हैं। शेष में आउटसोर्स पर काम लिया जा रहा है। थर्ड ग्रेड के 318 पदों की तुलना में 234 ही कार्यरत हैं। नर्सिंग के 747 पदों के मुकाबले 305 ही सेवा दे रही हैं। रिम्स निदेशक के अनुसार, रिम्स में जरूरत करीब 3500 स्टाफ की है, इसमें चिकित्सक-नर्स से लेकर अन्य कर्मी शामिल हैं। जबकि रिम्स में 35% से भी कम कर्मी कार्यरत हैं। समय पर जांच नहीं होने से टाले जा रहे ऑपरेशन रिम्स में अधिकांश गरीब व बीपीएल श्रेणी के रोगी पहुंचते हैं। कई बार समय पर जांच नहीं होने के कारण सर्जरियां भी टालने की नौबत आ जाती है। आयुष्मान भारत योजना के तहत भर्ती मरीजों को 15 से 20 दिन तक सिर्फ इम्प्लांट के लिए इंतजार करना पड़ता है। दैनिक भास्कर ने 6 विभागों की पड़ताल की। ऑर्थोपेडिक विभाग में 14 मरीज मिले, जो 15 दिन से अधिक समय से भर्ती हैं। कभी जांच तो कभी सामान नहीं आया बताकर ऑपरेशन टाले जा रहे हैं। सर्जरी विभाग में 21 और न्यूरोसर्जरी विभाग में 11 मरीज भर्ती हैं। सीटीवीएस, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी समेत अन्य विभागों में भी मरीज ऑपरेशन के इंतजार में हैं। न्यूरो सर्जरी का एक्सटेंशन वार्ड खुला, फिर भी मरीज फर्श पर निदेशक ने रिम्स में सेवा देते ही पुराने भवन का निरीक्षण किया था, फर्श में मरीजों का इलाज होता देख भड़के भी थे। उन्होंने आदेश जारी किया था कि तत्काल प्रभाव से बेड मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया जाए। जिस वार्ड में बेड खाली हों, मरीजों को बेड अलॉट किया जाए। लेकिन आज भी स्थिति वैसी ही है। प्रबंधन ने न्यूरो सर्जरी के लिए एक्सटेंशन वार्ड भी खोला। बावजूद आज भी मरीज न्यूरो सर्जरी विभाग के फर्श पर रह कर इलाज कराने को विवश हैं। 7 से 8 एक्सरे मशीनें भी हैं खराब रिम्स के रेडियोलॉजी विभाग की 7 से 8 एक्सरे मशीनें खराब हैं। एक ही एक्सरे मशीन से जांच की जा रही है, जबकि विभागों में पोर्टेबल मशीन के सहारे जांच हो रही है। मालूम हो कि रोजाना 600 मरीज एक्सरे के लिए आते हैं। इनमें 150 रिम्स में भर्ती मरीज होते हैं। एक्सरे नहीं होने से इलाज में देरी होती है। अल्ट्रासाउंड मशीन की कमी रिम्स में छह अल्ट्रासाउंड मशीन की जरूरत है, जबकि तीन ही हैं। इसमें भी दो मशीन अधिकांश समय खराब पड़ी रहती है। अस्पताल में हर दिन करीब 400 रोगियों को अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है। इसमें करीब 300 आउटडोर मरीज, जबकि 100 भर्ती मरीज शामिल हैं। निदेशक बोले- मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने का प्रयास जारी एमआरआई मशीन दो साल से खराब रिम्स में करीब दो साल से एमआरआई जांच बंद है। जो मशीन थी, वह काफी पुरानी हो चुकी थी। मशीन हर माह में दो से तीन बार खराब होती थी। इसकी कई बार मरम्मत कराई गई। फिर, प्रबंधन ने दो साल से इस मशीन की मरम्मत करानी भी छोड़ दी, क्योंकि कंपनी ने मरम्मत का खर्च कई लाख रुपए बताया। निदेशक का दावा: करीब पांच करोड़ रुपए की मशीन की खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। मशीनों को भेजने का आदेश कंपनियों को दिया जा रहा है। 30 एनेस्थीसिया की वर्क स्टेशन मशीन मंगाई जा रही है, इससे ऑपरेशन की रफ्तार तेज होगी।