Shibu Soren Dies: झारखंड की राजनीति और जनजातीय चेतना के सबसे प्रभावशाली चेहरों में शुमार दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हो गया है। 80 वर्ष से अधिक उम्र के शिबू सोरेन ने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे और उन्हें इलाज के लिए विशेष रूप से राजधानी दिल्ली लाया गया था।
बीमारी और अस्पताल में भर्ती
प्राप्त जानकारी के अनुसार, शिबू सोरेन को किडनी में संक्रमण और ब्रोंकाइटिस की शिकायत थी। इसके अलावा उनकी उम्र से जुड़ी कई अन्य बीमारियाँ भी सामने आ रही थीं। स्थिति बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के प्रतिष्ठित सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां डॉक्टरों की टीम उनकी स्थिति पर नजर बनाए हुए थी। बावजूद इसके, उनकी हालत लगातार गंभीर बनी रही और अंततः उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
आदिवासी समाज और झारखंड आंदोलन में योगदान
शिबू सोरेन न केवल झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक नेताओं में से थे, बल्कि उन्होंने पूरे झारखंड आंदोलन को जमीन से जोड़ने का काम किया। वे झारखंड राज्य की मांग को लेकर वर्षों तक संघर्षरत रहे और अंततः जब 2000 में राज्य का गठन हुआ, तो वे इस राजनीतिक क्रांति के प्रमुख सूत्रधार के रूप में उभरे। ‘दिशोम गुरु’ के नाम से पहचाने जाने वाले शिबू सोरेन आदिवासी समाज के लिए एक आइकॉन थे, जिनका राजनीतिक सफर संसद से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक फैला था।
झारखंड में शोक की लहर
उनके निधन की खबर फैलते ही झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और जनजातीय संगठनों में गहरा दुख व्याप्त है। मुख्यमंत्री, मंत्रीगण, विपक्षी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। रांची, दुमका, बोकारो, लोहरदगा, जमशेदपुर सहित कई जिलों में लोगों ने उन्हें याद करते हुए शोक सभाओं का आयोजन शुरू कर दिया है।
एक युग का अवसान
शिबू सोरेन का जाना केवल एक नेता के निधन के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह आदिवासी नेतृत्व के एक युग के अवसान के तौर पर भी महसूस किया जा रहा है। वे न केवल एक राजनीतिक शख्सियत थे, बल्कि जनआंदोलनों के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाने वाले मार्गदर्शक भी थे। उनका जीवन संघर्ष और प्रतिबद्धता की मिसाल बना रहेगा।