Tulin Village Crisis: सरायकेला जिले के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के दलमा सेंचुरी की तराई में बसे चिलगू पंचायत के तुलिन गांव में हाल की लगातार बारिश ने ग्रामीणों का जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। गांव के कई घरों के ढह जाने से ग्रामीण खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। बुद्धेश्वर सिंह, चैतन सिंह और सोनू सिंह के घर पूरी तरह से मिट्टी और खपड़ से बने थे, जो भीषण बारिश की मार नहीं झेल सके और ढह गए।
रहने के लिए नहीं बचा ठिकाना
ढहे हुए घरों के बाद ग्रामीणों के पास न तो रहने की कोई सुरक्षित जगह है और न ही बरसात से बचने का कोई साधन। पीड़ितों ने बताया कि उन्हें न किसी जनप्रतिनिधि, न मंत्री और न ही वन विभाग की ओर से कोई मदद मिली है। परिवार जन इस उम्मीद में दिन काट रहे हैं कि कम से कम प्रशासन आपदा राहत के रूप में कुछ सहायता उपलब्ध कराएगा।
खेती-किसानी भी संकट में
तुलिन गांव के अधिकांश लोग कृषि और जंगल पर निर्भर हैं। लेकिन भारी बारिश के कारण खेती की जमीन जलमग्न हो चुकी है। किसानों के पास न तो बीज हैं, न खाद, और न ही उपकरण, जिससे वे फसलों की देखभाल कर सकें। जो थोड़ी-बहुत फसल बची है, उसे भी खराब होने का खतरा है। ग्रामीणों ने बताया कि बिना किसी सरकारी सहयोग के वे खेती जारी नहीं रख सकते।
प्रशासन और विभागों पर उठे सवाल
ग्रामीणों का आरोप है कि इस आपात स्थिति में प्रखंड प्रशासन ने अब तक कोई तात्कालिक राहत या सर्वेक्षण नहीं किया। न वन विभाग की ओर से कोई संपर्क किया गया, जबकि यह क्षेत्र दलमा सेंचुरी के बिल्कुल समीप है। स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता ने भी लोगों को निराश किया है।
मांग: राहत, आश्रय और संसाधन
ग्रामीणों की मांग है कि प्रशासन उन्हें अस्थायी आश्रय, सूखा राशन, बर्तन और तिरपाल जैसी बुनियादी चीजें तुरंत उपलब्ध कराए। साथ ही, ढहे हुए घरों की मरम्मत के लिए सरकारी सहायता दी जाए। किसानों के लिए खाद, बीज और कृषि उपकरण भी मुहैया कराना अनिवार्य बताया गया है, ताकि उनकी आजीविका पटरी पर लौट सके। ग्रामीणों को उम्मीद है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन जल्द कदम उठाएंगे, ताकि दलमा की तराई में बसे तुलिन जैसे गांवों में लोगों को राहत मिल सके और उनका जीवन दोबारा सामान्य हो सके।