Elephant Attack Seraikela: सरायकेला जिले के नीमडीह प्रखंड के तिल्ला पंचायत स्थित कुशपुतुल और सिरका टोला गांव शुक्रवार देर रात जंगली हाथियों के हमले से थर्रा उठे। चांडिल वन क्षेत्र से आए हाथियों के एक झुंड ने रात करीब 11 बजे गांव में घुसकर घरों, खेतों और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इस दौरान गांव में अफरा-तफरी मच गई और लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे।

पूर्व विधायक की पत्नी बाल-बाल बचीं
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ी चिंता का विषय तब सामने आया, जब हाथियों का रुख ईचागढ़ विधानसभा के पूर्व विधायक स्वर्गीय घनश्याम महतो के निवास की ओर हुआ। उस समय घर में उनकी पत्नी अकेली मौजूद थीं। ग्रामीणों ने समय पर हस्तक्षेप कर उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला। उन्होंने बताया कि घर के आसपास हाथियों की चिंघाड़ और तोड़फोड़ की आवाजें सुनकर वह अंदर ही सन्न रह गई थीं। शुक्र है कि ग्रामीणों की तत्परता से एक बड़ा हादसा टल गया।
फल, अनाज और यंत्र सब बर्बाद
ग्रामीणों के अनुसार हाथियों ने गांव में कई आम और कटहल के पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया। घरों में रखा हुआ अनाज, आलू और बीज भी उनके पैरों तले रौंद दिए गए। कई घरों के दरवाज़े तोड़े गए और धान झाड़ने वाली मशीनें भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दी गईं। गांव के लोग अब खेती और आजीविका को हुए नुकसान को लेकर चिंतित हैं।

वन विभाग पर उठे सवाल
स्व. विधायक के अनुज नृपेन्द्र महतो ने बताया कि गांव में पहले भी हाथियों की आवाजाही की सूचना वन विभाग को दी गई थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने कहा, “अब जब जान पर बन आई, तब सबको होश आया है। ग्रामीण लंबे समय से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, लेकिन वन विभाग की लापरवाही ने आज सबको जोखिम में डाल दिया है।”
घनश्याम महतो की विरासत
स्व. घनश्याम महतो बिहार विधानसभा में ईचागढ़ सीट से तीन बार (1969, 1977, 1980) विधायक रह चुके हैं। वे ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के वरिष्ठ नेता माने जाते थे। उनका निधन 9 दिसंबर 2003 को हुआ था। उनका परिवार अब सक्रिय राजनीति से पूरी तरह दूर हो चुका है, लेकिन क्षेत्र में उनकी स्मृति आज भी जीवंत है।
सवालों के घेरे में प्रशासन
कुशपुतुल गांव में हुई इस घटना ने एक बार फिर वन विभाग और जिला प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब पूर्व विधायक के घर तक सुरक्षा नहीं पहुंची, तो आम ग्रामीणों की सुरक्षा की कल्पना सहज ही की जा सकती है। लोगों का कहना है कि यदि समय रहते वन विभाग सक्रिय होता, तो शायद इतना बड़ा नुकसान नहीं होता।