Daughter Declared Dead: राजगंज, पश्चिम बंगाल: सामाजिक और धार्मिक असहिष्णुता की एक हैरान करने वाली और दुखद घटना में, एक मध्यमवर्गीय परिवार ने अपनी इकलौती जीवित बेटी को “मृत” घोषित कर दिया और उसकी मूर्ति बनाकर श्मशान में अंतिम संस्कार कर दिया। यह घटना राजगंज प्रखंड के मझियाली ग्राम पंचायत के डांगापाड़ा इलाके की है, जहां 26 वर्षीय नेहा डे ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर दूसरे धर्म के युवक से विवाह किया।

“वह अब हमारे लिए मर चुकी है” – पिता नारायण डे का बयान
नेहा के पिता नारायण डे ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हमने उसे अपनी आंखों के तारे की तरह पाला, लेकिन उसने हमारी संस्कृति और समाज के नियमों को तोड़ा। आज से वह हमारे लिए मर चुकी है। इसलिए हमने उसका अंतिम संस्कार कर दिया।”
परिवार ने स्थानीय मूर्तिकार से बेटी की प्रतिकृति बनवाई, जिसे पूरे रीति-रिवाज से श्मशान ले जाया गया और चिता पर अग्नि दी गई। इस दौरान परिवार के सदस्य रोते हुए लेकिन ‘गर्व’ के साथ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शामिल हुए।

श्राद्ध की तैयारी, पिंडदान होगा जीवित बेटी के नाम
परिवार यहीं नहीं रुका। उन्होंने घोषणा की है कि अगले दिन रिश्तेदारों को आमंत्रित कर ‘श्राद्ध कर्म’ का आयोजन किया जाएगा। इस विधि में पिंडदान, तर्पण और भोज जैसे वो सभी कर्म किए जाएंगे जो किसी मृत व्यक्ति के लिए किए जाते हैं।

समाज में उभरे मिले-जुले भाव, चर्चा और बहस तेज
यह घटना स्थानीय समाज में गहरी बहस का विषय बन गई है। कुछ लोग परिवार की भावनाओं और “परंपरा” के पक्ष में खड़े हैं, तो कई इसे कट्टरता, स्त्री विरोध और धार्मिक असहिष्णुता की पराकाष्ठा मान रहे हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक विश्लेषक इस घटना को एक जीवित महिला की सामाजिक हत्या के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह घटना भारत के धार्मिक सहिष्णुता और अंतरधार्मिक विवाह के प्रति असुरक्षा को उजागर करती है।

कानूनी व सामाजिक पहलू पर खड़े हुए सवाल
हालांकि यह मामला फिलहाल कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में नहीं आता, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर सार्वजनिक रूप से अंतिम संस्कार करना, मानसिक उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार का चरम रूप है।

यह घटना महिला अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और भारत के संविधानिक मूल्यों के बीच हो रहे संघर्ष की मिसाल बन गई है।