Seraikela Kharsawan: फ्रांस के पर्यटक पहुंचे चोगा गांव‚ देखा मानभूम छऊ का जादू

Seraikela Kharsawan: सरायकेला-खरसावां जिले के ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के चोगा गांव में शुक्रवार को एक विशेष सांस्कृतिक दृश्य देखने को मिला, जब फ्रांस से आए पर्यटक दल नटराज कला केन्द्र पहुंचे। इस दौरान विदेशी मेहमानों ने भारत की लोकसंस्कृति और आदिवासी कला के अद्भुत संगम—मानभूम छऊ नृत्य—की बारीकियों को करीब

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Seraikela Kharsawan: सरायकेला-खरसावां जिले के ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के चोगा गांव में शुक्रवार को एक विशेष सांस्कृतिक दृश्य देखने को मिला, जब फ्रांस से आए पर्यटक दल नटराज कला केन्द्र पहुंचे। इस दौरान विदेशी मेहमानों ने भारत की लोकसंस्कृति और आदिवासी कला के अद्भुत संगम—मानभूम छऊ नृत्य—की बारीकियों को करीब से समझने का प्रयास किया।

कला केन्द्र के कलाकारों ने पारंपरिक परिधान और मुखौटे धारण कर मां दुर्गा द्वारा महिषासुर वध की प्रसिद्ध छऊ प्रस्तुति दी। ढोल, नगाड़ा और सहनाई की थाप पर कलाकारों की तालबद्ध नृत्य मुद्राओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि विदेशी अतिथि मंत्रमुग्ध होकर तालियां बजाने लगे।

नटराज कला केन्द्र के सचिव प्रभात कुमार महतो ने फ्रांसीसी मेहमानों को छऊ नृत्य में प्रयुक्त मुखौटे, साज-सज्जा, वाद्य यंत्रों और नृत्य शैलियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इन मुखौटों के निर्माण में मिट्टी, कागज, कपड़ा और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। पर्यटकों ने मुखौटों के निर्माण स्थल का भी अवलोकन किया और उनकी कला कौशल की सराहना की।

प्रदर्शन देखने के बाद विदेशी पर्यटक कलाकारों की नृत्य-शैली और भाव-भंगिमा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फ्रांस में भी नटराज कला केन्द्र के कलाकारों को प्रदर्शन के लिए आमंत्रित करने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि इस कला का वैश्विक मंच पर प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि लोग भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को और करीब से जान सकें।

नई दिल्ली के गाइडर सानु कुमार गीरी ने बताया कि यह दल फ्रांस से दिल्ली पहुंचा और गो ट्रेवल रांची के सहयोग से चोगा गांव आया। उन्होंने कहा कि नटराज कला केन्द्र के कलाकारों ने देश-विदेश में छऊ नृत्य का सफल प्रदर्शन किया है, जो भारतीय लोककला की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई दे रहा है।मौके पर फ्रांसीसी अतिथि जोजेत, अवनी, क्रिस्टीन, जेराद, दोमीनीक सहित नटराज कला केन्द्र के कलाकार उपस्थित रहे। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान का उदाहरण बना, बल्कि भारत और फ्रांस के बीच कला के पुल को और मजबूत करने का माध्यम भी साबित हुआ।

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