भुईंफोड़ के रहने वाले सरोज सिंह ने इसकी शुरुआत पिछले साल की थी। वे ई तकनीक से 50 टैंकों में मछली पाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछली बार उन्हें सीखने में ही समय चला गया। इस बार उम्मीद है कि मछली का अच्छा उत्पादन होगा। एक टैंक में 300-400 मछलियां डाली जाती हैं। ढाई महीने में यह मछलियां 2-3 किलो तक की हो जाती हैं। पिछले साल उन्होंने तीन टन मछली का उत्पादन किया। इस बार उत्पादन दोगुना होने की संभावना है।
मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक ऐसी ही है। इसमें कम जगह में छोटा और गोल टैंक बनाकर मछली पालन किया जाता है। धनबाद में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है। बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालने पर उनका ग्रोथ तेजी से होता है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक सिस्टम लगाने के लिए 60 फीसदी तक सब्सिडी मिलती है। इस योजना के तहत महिला मछली पालक को 60 प्रतिशत की सब्सिडी और पुरुष मछली पालकों को 40 फीसदी तक आर्थिक अनुदान दिया जाता है।
जिला मत्स्य पदाधिकारी मुजाहिद अंसारी ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने के लिए किसान की आवश्यकता, मार्केट डिमांड और बजट को ध्यान में रख कर टैंक बनाए जाते हैं। इनमें पानी भरकर मछलियां पाली जाती हैं। टैंक विधि से मछली पालन करने पर मछलियों को दाना डाला जाता है, जिसके बाद मछलियां इसका सेवन करके अपशिष्ट छोड़ती हैं। यह अपशिष्ट दाने के साथ टैंक के तल में बैठ जाते हैं, जिसकी सफाई या रीसाइक्लिंग के लिए बायोफ्लॉक बैक्टीरिया छोड़ा जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के अपशिष्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिससे मछलियों का चारा दोबारा तैयार हो जाता है। यह चारा खाने से मछलियों का ग्रोथ तेजी से होता है।
धनबाद में 4 लोगों को इस योजना के तहत 7.5-7.5 लाख रुपए अनुदान के लिए चयन किया गया है। वहीं बड़े स्तर पर 50 लाख रुपए के लिए एक लाभुक का चयन किया गया है। किसान चाहें तो बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के लिए अपनी सहूलियत के हिसाब से छोटे या बड़े टैंक बनवा सकते हैं
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