Tribal Protest: गिरिडीह जिले के डुमरी में गुरुवार को आदिवासी समाज के लोगों ने जन आक्रोश रैली निकाली। यह रैली कुड़मी समुदाय को आदिवासी सूची में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में आयोजित की गई थी। रैली में डुमरी और पीरटांड़ प्रखंड के विभिन्न आदिवासी गांवों से सैकड़ों महिला-पुरुष और वृद्ध पारंपरिक हथियारों के साथ शामिल हुए।
जन आक्रोश रैली की शुरुआत डुमरी के केबी हाई स्कूल मैदान से हुई। जुलूस इसरी बाजार होते हुए पुनः मैदान में लौटा, जहां यह एक जनसभा में तब्दील हो गया। सभा में आदिवासी नेताओं निशा भगत, सिकंदर हेम्ब्रम समेत कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी। सभी ने एक सुर में कुड़मी समाज को आदिवासी सूची में शामिल किए जाने के प्रयासों का कड़ा विरोध किया।
रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों ने डुमरी विधायक जयराम महतो और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के खिलाफ भी नारेबाजी की। आदिवासी नेताओं का आरोप था कि ये दोनों नेता समुदायों के बीच एकता का नारा देकर राजनीतिक लाभ उठा रहे हैं।
आदिवासी नेता सिकंदर हेंब्रम ने कहा कि कुड़मी जाति को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग को केंद्र सरकार ने 2024 में ही खारिज कर दिया था, इसके बावजूद कुछ नेता इस मुद्दे पर लोगों को भड़का रहे हैं। उन्होंने कहा कि “महतो और मांझी की लड़ाई में आम लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, जो पूरी तरह गलत है।”
सिकंदर हेंब्रम ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों को बुलाकर संवैधानिक तरीके से समाधान निकालने की पहल करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने चुप्पी साध रखी है। इससे स्पष्ट होता है कि “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी समाज को ठगने का काम कर रहे हैं।”
सभा में आदिवासी नेता निशा भगत ने कहा कि आदिवासी इस देश के मूल नागरिक हैं और उनकी हकमारी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा, “1871 में जब आदिवासियों ने मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, तब कुड़मी समाज कहां था?”
निशा भगत ने कुड़मी समाज द्वारा आरक्षित सीटों पर दावा ठोकने की कोशिशों को आदिवासी अधिकारों पर सेंध बताया। उन्होंने झारखंड में लगातार आदिवासी मुख्यमंत्री रहने के बावजूद सीएनटी और एसपीटी एक्ट के उल्लंघन पर भी नाराजगी जताई और कहा कि सरकार को इन कानूनों की रक्षा करनी चाहिए।
सभा के अंत में नेताओं ने साफ कहा कि अगर सरकार ने कुड़मी समाज को आदिवासी सूची में शामिल करने की दिशा में कोई कदम उठाया, तो आदिवासी समाज सड़कों पर उतरकर इसका कड़ा विरोध करेगा। रैली ने गिरिडीह और आसपास के इलाकों में आदिवासी एकजुटता का स्पष्ट संदेश दिया है।