Santhal Pargana Row: 22 दिसंबर को प्रस्तावित संथाल परगना स्थापना दिवस कार्यक्रम को लेकर जिला प्रशासन द्वारा कड़ी शर्तें लगाए जाने के बाद आयोजकों ने कार्यक्रम रद्द करने की घोषणा कर दी है। आयोजकों का कहना है कि लगाए गए नियम और शर्तें सामान्य सांस्कृतिक एवं खेल आयोजनों की तुलना में असामान्य थीं, जिससे कार्यक्रम का आयोजन संभव नहीं रह गया।
इस पूरे मामले पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राज्य सरकार और जिला प्रशासन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि फुटबॉल प्रतियोगिता और सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे सामान्य आयोजनों के लिए भी अत्यधिक संख्या में मजिस्ट्रेट, भारी पुलिस बल और कठोर शर्तें थोप दी गईं, जिससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन की मंशा कार्यक्रम को बाधित करने की थी।
चंपई सोरेन ने कहा कि अन्य जिलों और राज्यों में इस तरह के कार्यक्रम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होते हैं, लेकिन साहिबगंज जिले में विशेष रूप से रोक-टोक की जा रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि किसी व्यक्ति या संगठन के कार्यक्रमों पर अघोषित प्रतिबंध लगाया गया है, तो सरकार को इसे सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि करीब 170 वर्ष पूर्व हूल विद्रोह के जरिए अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने वाले वीर सिदो–कान्हू, चांद–भैरव और वीरांगना फूलो–झानो ने कभी नहीं सोचा होगा कि आज़ाद भारत में उनकी धरती भोगनाडीह को दोबारा प्रशासनिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि हूल विद्रोह के नायक वीर सिदो–कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू और उनकी संस्था वीर सिदो–कान्हू हूल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को लगातार प्रशासनिक अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।
चंपई सोरेन ने जून 2025 में हूल दिवस के अवसर का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय गैर-राजनीतिक कार्यक्रम की अनुमति के लिए आवेदन लंबित रखने के बाद जिला प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि ग्रामसभा की स्वीकृति के बावजूद आधी रात में पंडाल तोड़ा गया और विरोध करने पर लाठीचार्ज तथा आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी 30 जून को हूल दिवस के अवसर पर झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा से बड़ी संख्या में आदिवासियों के भोगनाडीह पहुंचने की घोषणा की गई है। इसे प्रशासन के लिए खुली चुनौती बताते हुए उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए वे और आदिवासी समाज पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि जिस तरह नगड़ी आंदोलन के दौरान सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा था, उसी तरह संथाल परगना में भी सरकार को पीछे हटना पड़ेगा।


