Patmada Farmer: हौसला बुलंद हो तो सपनों को उड़ान मिल ही जाती है। पटमदा प्रखंड के लोवाडीह गांव के दिव्यांग किसान गौरा चांद गोराई इसका सबसे मजबूत उदाहरण हैं। शारीरिक चुनौतियों के बावजूद गौरा चांद ने न सिर्फ संघर्ष का सामना किया बल्कि खुद को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाकर पूरे इलाके में प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।
गौरा चांद अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं। उन्होंने गेंदा फूल की खेती शुरू की और उसी फूल से प्रतिदिन मालाएँ तैयार कर बंगाल और जमशेदपुर के बाजारों में भेजना शुरू किया। इससे होने वाली नियमित आय ने उनके परिवार का भरण-पोषण मजबूत आधार दे दिया है। साथ ही, वे एक राशन दुकान भी संचालित करते हैं, जिससे उनकी कमाई के साधन और बढ़ जाते हैं।
गौरा चांद के अनुसार, फूल की खेती सब्जियों की तुलना में अधिक सुविधाजनक है। सब्जी की फसल को समय पर तोड़कर तुरंत बाजार ले जाना पड़ता था, देर होने पर फसल खराब होने का डर बना रहता था। इसके विपरीत, फूलों को आवश्यकता के अनुसार किसी भी समय तोड़ा जा सकता है।वे बताते हैं कि फूल की खेती का खर्च कम आता है और मुनाफा भी अधिक होता है। साथ ही, फसल खराब होने की संभावना न्यूनतम रहती है। यही नहीं, वे ऑर्डर मिलने पर ताजे फूल तोड़कर उसी समय मालाएँ तैयार कर बाजार में भेज देते हैं।
गौरा चांद गोराई की कहानी यह साबित करती है कि जब मेहनत और हिम्मत साथ हों तो परिस्थितियाँ कभी भी बाधा नहीं बनतीं। दिव्यांगता के बावजूद उन्होंने अपने दम पर जीवन को नई दिशा दी है और अब गांव के कई युवा उनसे प्रेरित होकर फूल की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।


