JMM BJP Alliance: जेएमएम और बीजेपी की संभावित नजदीकियां‚ गठबंधन पर फिर तेज हुई चर्चा

JMM BJP Alliance: झारखंड की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से इस चर्चा ने जोर पकड़ा है कि भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा एक बार फिर साथ आ सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनावों के बाद महागठबंधन में दरार की अटकलें लगातार गहरी होती गईं और अब संकेत मिल

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JMM BJP Alliance: झारखंड की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से इस चर्चा ने जोर पकड़ा है कि भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा एक बार फिर साथ आ सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनावों के बाद महागठबंधन में दरार की अटकलें लगातार गहरी होती गईं और अब संकेत मिल रहे हैं कि जेएमएम कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना सकती है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक कई कारणों से इसे कठिन संभावना बताते हैं, क्योंकि दोनों दलों की विचारधारा पूरी तरह विपरीत मानी जाती है। फिर भी, राजनीति में किसी भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता, खासकर तब जब दोनों पार्टियां इससे पहले दो बार मिलकर सरकार चला चुकी हों।

साल 2009 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। बीजेपी और जेएमएम दोनों को 18–18 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 14 और झारखंड विकास मोर्चा को 11 सीटें हासिल हुईं। राजनीतिक गणित ने ऐसी स्थिति बनाई जिसमें जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का निर्णय लिया और संयुक्त सरकार बनी। लेकिन यह गठबंधन शुरुआत से ही अस्थिर माना गया और कुछ ही महीनों में आपसी टकराव के कारण बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया। इसके साथ ही सरकार गिर गई और झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।

राष्ट्रपति शासन के बाद बीजेपी और जेएमएम फिर से साथ आए और इस बार भाजपा ने अपने नेता अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया जबकि हेमंत सोरेन को उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। इस सरकार के गठन से उम्मीदें बनी थीं कि दोनों दल पिछली गलतियों से सीखेंगे, लेकिन लगभग ढाई साल बाद यह सरकार भी गिर गई। इस बार जेएमएम ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे गठबंधन दोबारा टूट गया।

दोनों बार गठबंधन टूटने की वजह लगभग एक जैसी रही—विचारधारात्मक दूरी, आपसी अविश्वास और सत्ता साझेदारी पर लगातार मतभेद।पहली बार 2009 में शिबू सोरेन के मुख्यमंत्री रहते सरकार महज छह महीनों में ही बिखर गई क्योंकि कई मुद्दों पर दोनों दल सहमत नहीं हो सके।दूसरी बार 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली सरकार शुरू में स्थिर दिखी, लेकिन समय के साथ सत्ता-समझौते, नेतृत्व की भूमिका और राजनीतिक हितों को लेकर मतभेद तेज हुए, जिससे जेएमएम ने अपना समर्थन वापस ले लिया।इन घटनाओं ने यह साफ किया कि दो बिल्कुल भिन्न विचारधाराओं वाली पार्टियां सत्ता के लिए तो साथ आ सकती हैं, लेकिन लंबे समय तक गठबंधन चलाना दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।

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