Giridih Eviction Row: गिरिडीह जिले के गांडे विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत जीतपुर पंचायत के एक गांव में 20 दिसंबर को ऐसी घटना सामने आई, जिसने प्रशासनिक संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। यहां वन विभाग की कार्रवाई में एक नेत्रहीन परिवार का आशियाना बिना किसी पूर्व सूचना या नोटिस के तोड़ दिया गया। इस कार्रवाई के बाद नेत्रहीन महेन्दर मंडल और उनकी दो बेटियां—रुक्मणि कुमारी और कंचन कुमारी—अचानक बेघर हो गईं।
जानकारी के अनुसार, महेन्दर मंडल वर्षों से इसी घर में अपने परिवार के साथ रहकर जीवन यापन कर रहे थे। 20 दिसंबर को वन विभाग की टीम गांव पहुंची और यह कहते हुए घर को ध्वस्त कर दिया कि मकान वन विभाग की भूमि पर बना है। परिवार का कहना है कि उन्हें किसी तरह का नोटिस या वैकल्पिक व्यवस्था की सूचना पहले नहीं दी गई थी। घर टूटते ही नेत्रहीन पिता और उनकी दोनों बेटियों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसी गांव में कथित वन भूमि पर 50 से अधिक मकान बने हुए हैं, लेकिन कार्रवाई केवल इसी नेत्रहीन और असहाय परिवार पर की गई। इसे लेकर ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है। लोगों का कहना है कि यदि जमीन वास्तव में वन विभाग की है, तो फिर कार्रवाई चयनित तरीके से क्यों की गई। इस सवाल ने पूरे गांव में भय और असंतोष का माहौल पैदा कर दिया है।
इन दिनों क्षेत्र में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ऐसे हालात में घर उजड़ जाने के बाद महेन्दर मंडल और उनकी दोनों बेटियां खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। न सिर पर छत है और न ही ठंड से बचाव का कोई इंतजाम। ग्रामीणों ने बताया कि अब तक न तो प्रशासन की ओर से कोई अस्थायी आवास उपलब्ध कराया गया है और न ही किसी तरह की राहत पहुंची है।
घटना के बाद ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन से मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की मांग की है। लोगों का कहना है कि पीड़ित परिवार को तत्काल अस्थायी आवास, ठंड से बचाव की सुविधा और राहत दी जानी चाहिए। साथ ही, बिना नोटिस की गई इस कार्रवाई की निष्पक्ष जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग भी उठाई जा रही है। यह मामला अब सिर्फ एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक असहाय परिवार के दर्द और सिस्टम की संवेदनहीनता की कहानी बनकर सामने आया है।


