Chandil Road Crisis: 9 करोड़ की योजना बनी जनता की मुसीबत : चांडिल–कांड्रा सड़क बनी मौत का सौदागर

Chandil Road Crisis: एक ओर सरकार विकास की उपलब्धियों का बखान कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाने वाली चांडिल–मानिकुई–कांड्रा मुख्य सड़क जनता के लिए अब जानलेवा साबित हो रही है। करीब 9 करोड़ रुपये की लागत

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Chandil Road Crisis: एक ओर सरकार विकास की उपलब्धियों का बखान कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाने वाली चांडिल–मानिकुई–कांड्रा मुख्य सड़क जनता के लिए अब जानलेवा साबित हो रही है। करीब 9 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस सड़क का टेंडर मई माह में पूरा हो चुका था, लेकिन चार महीने बीत जाने के बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है।

टेंडर पूरा, पर काम ठप

इस परियोजना की जानकारी स्वयं ईचागढ़ की विधायक सविता महतो ने 5 मई को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर साझा की थी। उन्होंने बताया था कि टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और जल्द ही सड़क का निर्माण कार्य शुरू होगा। मगर अक्टूबर तक भी इस दिशा में कोई काम न होने से जनता में नाराजगी बढ़ती जा रही है।

सड़क बनी गड्ढों का जाल

वर्तमान में यह सड़क जगह-जगह गहरे गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। बारिश के दिनों में ये गड्ढे पानी से भर जाते हैं, जिससे राहगीरों और वाहन चालकों के लिए जान का खतरा बना रहता है। स्थानीय निवासियों ने कहा कि हर दिन इस रास्ते से गुजरना अब किसी खतरे से कम नहीं। कई लोग फिसलकर घायल भी हो चुके हैं।

स्थानीय लोग और नेता हुए मुखर

क्षेत्र के लोगों ने सवाल उठाया कि यदि निर्माण कार्य में कोई अड़चन है, तो जनप्रतिनिधियों को दखल देना चाहिए। सड़क को कम-से-कम चलने योग्य तो बनाया जा सकता है, ताकि लोगों की जान पर बनी आफत टल सके।
स्थानीय भाजपा नेता दिवाकर सिंह ने सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि “ईचागढ़ क्षेत्र की कई सड़कों के टेंडर पूरे हो चुके हैं, लेकिन सरकार की लापरवाही से जानबूझकर निर्माण कार्य लटकाया जा रहा है।”

जनता की पीड़ा और सरकार की खामोशी

चांडिल अनुमंडल की यह सड़क न केवल कांड्रा और मानिकुई को जोड़ती है, बल्कि कटिया स्थित बीडीओ और सीओ कार्यालय तक पहुंचने का मुख्य मार्ग भी है। इसके बावजूद न तो कोई अधिकारी स्थल निरीक्षण कर रहा है और न ही ठेकेदार सक्रिय हैं। जनता सवाल कर रही है — क्या सरकार और जनप्रतिनिधियों को अब जनता की पीड़ा दिखाई नहीं दे रही? क्या करोड़ों की योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर ही सीमित रह जाएंगी?

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