Environment : भारत में 60 से अधिक पर्यावरण और सामाजिक संगठनों ने हिमालय में बड़ी परियोजनाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इनमें रेलवे की परियोजनाएं, जल विद्युत परियोजनाएं, चार लेन राजमार्ग परियोजनाएं शामिल हैं। इन 60 संगठनों की मांग है कि ऐसे किसी भी प्रोजक्ट को शुरू करने से पहले जनमत संग्रह और सार्वजनिक परामर्श लिया जाए। इस संगठन को ‘People For Himalaya’ नाम दिया गया है। संगठन द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए 5 सूत्री मांग पत्र जारी किया गया है।
क्या है ‘People For Himalaya’ की मांग?
‘People For Himalaya’ संगठन की मांग है कि हिमालय के किसी भी क्षेत्र में बड़ी परियोजनाओं के लिए जनमत संग्रह के माध्यम से लोकतांत्रिक निर्णय लिया जाए। संगठन का कहना है कि ऐसे मेगा प्रोजक्ट्स की वजह से हिमालय का अस्तित्व खतरें में पड़ रहा है।
Sonam Wangchuk ने बताई यह बातें…..
जयवायु कार्यकर्ता Sonam Wangchuk ने Press कॉन्फ्रेंस को संबोधीत करते हुए कहा कि बड़ी परियोजनाओं की वजह से हिमालय का शोषण हो रहा है। इस वजह से स्थानीय लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि पुनर्वास के प्रयासों के लिए सरकार द्वारा करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किया जाता है।
बता दें कि Sonam Wangchuk ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग को लेकर 21 दिनों का जलवायु उपवास रखा था। उन्हें जनता का भारी समर्थन मिला था।
पूर्वोत्तर में गंभीर हो गई स्थिति- मोहन सैकिया….
इस संगठन में पूर्वोत्तर संवाद मंच के मोहन सैकिया भी शामिल हैं। उनका कहना है कि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी घाटियों में बड़े पैमानें पर जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। ऐसे में परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। इन प्रोजक्ट का दूरगामी प्रभाव प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आता है।
संगठनों ने रखी है यह मांग
Himalaya नीति अभियान के गुमान सिंह और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के कर्ता धर्ता अतुल सती ने कहा कि ब्यास बाढ़ और जोशीमठ में भूमि धंसाव होना ऐसी ही नीतियों का परिणाम है।
क्लाइमेट फ्रंट जम्मू के अनमोल ओहरी ने चेतावनी दी कि हिमनद क्षेत्रों में सड़क निर्माण और नदी के तटों में चल रही विकास परियोजनाओं से क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।
संगठनों ने इस बात पर भी जोर दिया कि ग्राम सभाओं, पंचायतों और नगर निकायों को नवीनतम जोखिम अध्ययनों और जलवायु के अनुकूल रहने वाली रणनीतियों के बारे में समझाना बेहद जरूरी है।