Election Reform: चांडिल स्थित पॉलिटेक्निक कॉलेज में सोमवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ उपस्थित थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि देश में बार-बार होने वाले चुनावों से न केवल आर्थिक संसाधनों पर बोझ बढ़ता है, बल्कि शासन व्यवस्था भी बाधित होती है। ऐसे में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ जैसी व्यवस्था अपनाना समय की मांग है।
संजय सेठ ने बताया कि वर्ष 2024 के चुनाव में लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। इसके अलावा आचार संहिता लागू होने के कारण प्रशासनिक कार्यों में भी लंबा व्यवधान उत्पन्न हुआ। उन्होंने बताया कि हर पांच वर्षों में करीब 1012 दिनों तक आचार संहिता लागू रहती है, जिससे सरकारों के विकास कार्य रुक जाते हैं और नीति निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है। ऐसे में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से शासन की स्थिरता बढ़ेगी, सरकारी कामकाज में तेजी आएगी और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी।
संगोष्ठी के दौरान चांडिल पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य डॉ. नीरज प्रियदर्शी, भाजपा जिला अध्यक्ष उदय सिंह देव, भारतीय युवा मोर्चा के मंत्री आकाश महतो सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। वक्ताओं ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि यह विषय सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि शैक्षणिक और राष्ट्रीय सोच से जुड़ा है।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के जरिए संसदीय कार्य संस्कृति को सुव्यवस्थित करने की दिशा में सार्थक पहल हो सकती है।इस व्यवस्था के विरोध में उठने वाली चिंताओं का जिक्र करते हुए संजय सेठ ने स्पष्ट किया कि यह किसी एक दल की नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संरचना के हित में आवश्यक कदम है। हालांकि इस पर देश में गहन विमर्श की आवश्यकता है ताकि सभी पक्षों को विश्वास में लेकर निर्णय लिया जा सके।
समालोचनात्मक विश्लेषण:‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा भारत के राजनीतिक परिदृश्य में नया नहीं है, लेकिन इसकी व्यावहारिकता पर अब तक बहस होती रही है। संजय सेठ का यह कहना कि इससे लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी, एक सकारात्मक दृष्टिकोण है, लेकिन इसे लागू करने से पहले अनेक संवैधानिक, तकनीकी और प्रशासनिक पक्षों पर गंभीर विचार आवश्यक है। विशेष रूप से संघीय ढांचे में राज्यों की स्वतंत्रता और अधिकारों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह एक बड़ा प्रश्न है।
इसके साथ ही, यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे तो नागरिकों को उम्मीदवारों के आकलन और जनहित के मुद्दों की गहराई से समीक्षा का पर्याप्त अवसर मिलेगा या नहीं, यह भी चिंता का विषय है। इसके बावजूद यह कहने में संकोच नहीं कि यह प्रस्ताव देश में पारदर्शिता, खर्च में कटौती और शासन में स्थिरता लाने की दिशा में एक सशक्त पहल हो सकता है—यदि इसे व्यापक राजनीतिक सहमति और कानूनी ढांचे में सावधानीपूर्वक लागू किया जाए।