सरायकेला: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम ने सभी राजनीतिक पंडितों को सकते में डाल दिया है. किसी ने इस तरह के परिणाम की परिकल्पना भी नहीं की थी. शनिवार को जो परिणाम आए हैं उसने भाजपा नेतृत्व के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. यूं कहें तो हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की आंधी में बीजेपी- आजसू चारों खाने चित्त हो गयी है. दोनों ही दलों को अब पांच साल सशक्त और सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी होगी और जमीनी मुद्दों पर बात करनी होगी.
घुसपैठ के मुद्दे को इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जोर- शोर से उठाया उसपर राज्य की जनता ने एतबार नहीं किया. यहां तक कि भाजपा के मेनिफेस्टो को भी जनता ने नकार दिया, क्योंकि उन्हें भाजपा के वादों पर ऐतबार नहीं रहा. सीट- दर- सीट भाजपा चुनाव हारती चली गई. एक से बढ़कर एक भाजपाई सूरमा ढेर हो गए. चाहे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा हों या मधु कोड़ा. अपनी जमीन बचाने में नाकाम रहे. मधु कोड़ा और अर्जुन मुंडा की ऐसी दुर्गति हुई कि लोकसभा के बाद विधानसभा की जनता ने भी उन्हें नकार दिया.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू इसलिए चुनाव जीतने में सफल रही क्योंकि सरयू राय का सीट गठबंधन के तहत बदला गया. इस वजह से जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिम में एनडीए की लाज बची. इधर सिहभूम संसदीय सीट की अगर बात करें तो एकमात्र सरायकेला विधानसभा सीट से चंपई सोरेन ने भाजपा की लाज बचाई. वह भी अपने व्यक्तित्व के आधार पर, न कि भाजपाइयों की वजह से. इस जीत ने साबित कर दिया कि सरायकेला की जनता चंपाई सोरेन की दीवानी है सिंबल की नहीं. इस सीट पर 20 साल बाद भाजपा की वापसी हुई है. चंपाई सातवीं बार विधायक चुने गए हैं. इससे पहले वे एकबार निर्दलीय और पांच बार झामुमो के टिकट पर विधायक चुने गए. बदले सियासी घटनाक्रम के बाद चंपाई बीजेपी में शामिल हुए मगर बीजेपी के मठाधीशों की वजह से कोल्हान में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया.
ये सभी पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के करीबी माने जाते हैं और अर्जुन मुंडा की राजनीतिक जमीन खिसकने के पीछे इनकी बड़ी भूमिका है बावजूद इसके बीजेपी थिंक टैंक इसे मानने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि कोल्हान से चुनाव दर चुनाव बीजेपी का वोटबैंक खिसक रहा है. भाजपा को दुबारा कोल्हान में यदि वापसी करनी है तो चंपाई सोरेन के चेहरे पर दांव लगानी होगी क्योंकि चंपाई आंदोलन की उपज हैं और उन्हें संगठन खड़ा करने का अच्छा खासा अनुभव है. उन्होंने कई बार झामुमो को टूटने से बचाया है. हालांकि उसी झामुमो ने उनपर संगठन को तोड़ने का आरोप लगा कर अपमानित किया जिसकी वजह से उन्होंने झामुमो से सदा के लिए नाता तोड़ लिया. भाजपा की दुर्गति पर चम्पाई सोरेन ने कहा कि अब शीर्ष नेतृत्व को मंथन करना है उनका संघर्ष जारी रहेगा. उनकी लड़ाई आदिवसियों- मूलवासियों के अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ है इसके लिए वे अपना नया कर्मभूमि संथाल को बनाने जा रहे हैं. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि भाजपा आला कमान झारखंड बीजेपी में क्या बदलाव करती है.