Poppy Farming Surge: कभी नक्सली गतिविधियों के लिए कुख्यात रहे पलामू, चतरा और लातेहार जिलों के मनातू, पांकी, पीपरा टांड़, लावालौंग, प्रतापपुर, हंटरगंज और हेरहंज जैसे इलाकों में अब बंदूकों की गूंज थम चुकी है। लेकिन इन्हीं जंगलों में एक नई और खतरनाक फसल अवैध पोस्ता खेती तेजी से फैल रही है। यह खेती अब केवल कानून तोड़ने की घटना नहीं, बल्कि एक समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप ले चुकी है, जो पूरे क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है।
स्थानीय किसानों और प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, पोस्ता खेती की ओर झुकाव के पीछे आर्थिक कारण प्रमुख हैं। पारंपरिक खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है, जबकि पोस्ता से धान, मक्का या दलहन की तुलना में 8 से 10 गुना अधिक मुनाफा मिलने का दावा किया जा रहा है। सिंचाई व्यवस्था की बदहाली, सूखी नहरें और न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ जमीनी स्तर तक न पहुंचना किसानों की मजबूरी को और बढ़ाता है। दूसरी ओर, बिचौलियों और संगठित गिरोहों का मजबूत नेटवर्क बीज, सुरक्षा और खरीद तक की पूरी व्यवस्था उपलब्ध कराता है। एक स्थानीय किसान की पीड़ा इस सच्चाई को बयां करती है—“सरकार पेट नहीं भरती, पोस्ता भर देता है।”
सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संकट केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है। पोस्ता से तैयार हेरोइन की सप्लाई चेन अंतरराज्यीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैली होने की आशंका है। नेपाल और म्यांमार सहित अंतरराष्ट्रीय ड्रग रूट से इसके संभावित कनेक्शन की जांच चल रही है। ड्रग मनी के जरिए संगठित अपराध, हथियारों की खरीद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को फंडिंग मिलने की संभावना ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के बाद क्या ड्रग माफिया ने इन इलाकों को नया ठिकाना बना लिया है।
पुलिस और प्रशासन के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में कार्रवाई लगातार तेज हुई है, फिर भी पोस्ता खेती का रकबा घटने के बजाय बढ़ता गया।2020 में लगभग 350 हेक्टेयर खेती नष्ट की गई और 210 मामले दर्ज हुए।2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 420 हेक्टेयर और 260 मामलों तक पहुंचा।2022 में 510 हेक्टेयर क्षेत्र में कार्रवाई हुई।2023 में 680 हेक्टेयर से अधिक खेती नष्ट की गई।2024 में यह रकबा 800 हेक्टेयर के पार चला गया, जहां 500 से ज्यादा मामले और 400 से अधिक गिरफ्तारियां दर्ज की गईं।इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सख्त कार्रवाई के बावजूद समस्या थमती नहीं दिख रही।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब पुलिस और प्रशासन ने रणनीति बदली है। ड्रोन सर्वे और सैटेलाइट इमेजरी के जरिए जंगलों की निगरानी की जा रही है, जबकि एसटीएफ और जिला पुलिस की संयुक्त टीमें गठित कर इंटेलिजेंस साझा किया जा रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि अब केवल खेत नहीं, पूरे नेटवर्क को तोड़ा जाएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस समस्या का समाधान केवल पुलिस कार्रवाई से संभव नहीं है। वैकल्पिक फसल योजनाएं, सुनिश्चित खरीद, बेहतर सिंचाई, सड़क कनेक्टिविटी और सामाजिक सहभागिता के बिना पोस्ता खेती पर प्रभावी रोक लगाना मुश्किल होगा। स्वयंसेवी संगठनों और महिला समूहों के जरिए नशामुक्ति और वैकल्पिक आजीविका के प्रयास कुछ क्षेत्रों में उम्मीद जगाते दिख रहे हैं।


