Emergency 1975 : भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 की रात एक काला अध्याय बनकर उभरी थी। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी, जिससे संवैधानिक अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता और आम नागरिकों की आवाज़ को कुचल दिया गया। इसी दर्दनाक दौर की यादें आज भी ज़िंदा हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने उस दौर को नजदीक से जिया।रांची के वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह ने आपातकाल की वर्षगांठ पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि जब आपातकाल लगा, वे मारवाड़ी कॉलेज में इंटर के छात्र थे।
जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर उन्होंने परीक्षा तक छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े। 26 जनवरी 1976 को उनकी गिरफ्तारी हुई और करीब एक साल तक वह जेल की सलाखों के पीछे रहे।सीपी सिंह ने बताया कि जेल के भीतर डर और सन्नाटे का माहौल था। कोई मिलने तक नहीं आता था, क्योंकि हर किसी को गिरफ्तारी का डर सता रहा था। 30 जुलाई 1976 को रिहाई के बाद उन्होंने फिर से आंदोलन में भाग लिया, और दोबारा गिरफ्तारी का खतरा मोल लिया।उन्होंने कहा कि “आज भी जब वह दौर याद आता है, तो रूह कांप उठती है। लोकतंत्र की वो लड़ाई केवल हमारे नहीं, पूरे देश के आत्मसम्मान की थी।”आज, सीपी सिंह रांची से सात बार विधायक रह चुके हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खड़े होने की प्रेरणा आज की पीढ़ी को भी देते हैं।